Friday, 1 July 2011

समाज की कलंक बन गई हूँ, जब डायन की उपाधि मिली’’




मैं सावित्री देवी, उम्र-50 वर्ष है। मेरे पति का नाम स्व0 द्वारिका दास है। मैं ग्राम-नावाडीह, पोस्ट-डोमचाॅच, थाना-डोमचाॅच, जिला-कोडरमा की मूल निवासी हूँ।

मेरी घटना उन दिनों कि है जब हमारी शादी होकर घर आई और लोग हमे प्रजापति करने लगे। मैं तब से लाचार हुई जब हम अपनी पवित्रता को बरकरार रखती थी, किसी के यहाॅ खाना-पीना नही खाती थी और न ही किसी के यहाॅ का दिया गया कोई बनाया सामान खाती थी। इस कारण हमारे घर के पड़ोसी हमे डायन कहने लगे और तब से यह सिलसिला शुरू हुआ, सो अब तक चल रहा है। हद तो तब हो गई जब वर्ष 2009 के माघ महीने में जब हमारे भसूर कार्तिक दास का बेटा सरोज दास, जो 25 वर्ष का था। वो (तिलैया) कोडरमा रेलवे स्टेशन का रेलवे क्रासिंग पार कर रहा था और अचानक ट्रेन की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई तो हमारे भसूर व गोतिया वालों ने ये आरोप लगाया कि यही मेरा बेटा को खा गई। इस कारण झगड़ा हो गया। झगड़े में वो सब हमे मारने तक उतारू हो गये। ग्रामीणों ने कहा कि इस बात को साबित किया जाय कि ये डायन है। इस बात को लेकर टनकुप्पा, गया जिला (बिहार) से भगत लाया गया। भगत ने मेरे गोतिया के घर में आॅटा, सिंदुर, रोरी से गोल चक्का बनाया। चक्के के बीच में एक चक्का जाॅत (जिससे गेहू/मकई दर्रा जाता है) रखा उस पर हमें बैठाकर सामने एक लोटा पानी रख दिया, पानी मंे आग लग गया। इस पर उसने कहा कि तुम डायन हो। यह कहकर मेरे पीठ पर एक झापड़ मारा और एक कबुतर काट कर दो बूॅद खून मेरे ऊपर गिरा दिया। इसके बाद मेरा आँचल जला दिया। इस काम को देखकर मेरी बेटी भगत पर गुस्सा की तो वो डाॅटा और भरी सभा-समाज के बीच मेरी बेटी को भी डायन कहकर प्रताड़ित किया और कई अपशब्द कहा, जो मैं नही कह सकती। भगत ने पुरे समाज के बीच यह भी कहा कि आप लोग कहिएगा तो हम इस औरत को जला देगें, लेकिन मेरे ऊपर केस नही होना चाहिए। तब हमारे गोतिया और खडे़ होकर देख रहे लोगों ने कुछ भी नही कहा। मेरी बेटी बोली अगर मेरी माॅ डायन है तो जला दो और इतना कहकर वो फुट-फुट कर रोने लगी। यह सब देखकर मैं भी रो पड़ी, मंै यह सोच रही थी कि मेरा एक ही 2 द्य च् ं ह म

बेटा है। भगवान मेरे बेटे को ठीक से रखना। मैं भी रो रही थी और मेरी बेटी भी, लेकिन वहाॅ खड़े सैकड़ो लोग में किसी ने कुछ नही कहा। यह देखकर मेरी आत्मा और रो पड़ी। मैं अंदर से टूट गई। मेरे अंदर उस समय जान नही रहा, लेकिन बेटे के ख्याल ने हमें हिम्मत दिया। इस बात को लेकर हम फैसला भी करवाये, कई राजनीति दल के लोगों से गुहार लगाई कि हमें कोई न्याय दिलवाये, हमारे उपर लगा कलंक कोई मिटाये, लेकिन हमारा कोई नही सुना। आज भी हमें डायन कहा जाता है। हमारे गाॅव में किसी को कुछ होता है तो पुरा गोतिया सब हमें डायन कहके गाली गलौज करने लगते है। तब मेरी आत्मा रो जाती है। मैं डायन नही हूॅ यह साबित करने के लिये हमारे गोतिया जो बोले हम सब किये फिर भी हमे डायन कहते है। मैं अपने घर के आस-पास पेड़-पौधा लगाता हूॅ तो वो भी उखाड़ कर फेक देते है। यह सोचकर मै परेशान रहती हूॅ। साथ ही मेरे बेटा का बेटा जो मेरा पोती है उसे किसी बच्चों के साथ खेलने नही दिया जाता है। रात में पास पड़ोस के लोग घर में पत्थर मारते है। इस तरह मैं परेशान हूॅ। आपको अपनी सारी घटना सुनाकर हल्का महसूस कर रही हूॅ आज तक किसी ने इस तरह हमारी घटना को नही सुना है।

‘‘मेरा बेटा मारा गया, पुलिस अब तक मुजरिमों को गिरफ्तार नही किया’’





मेरा नाम विश्वनाथ मेहता, उम्र-45 वर्ष है। मेरे पिता का नाम स्व0 झरी मेहता है। मैं ग्राम-तेतरियाडीह, पोस्ट-डोमचाॅच, थाना-डोमचाॅच, जिला-कोडरमा का मूल निवासी हूँ।

घटना उन दिनों की है जब 26 जनवरी 2011 को पुरा देश गणतंत्र दिवस में झुम रहा था और मेरे घर मे मातम का आलम था। 26 जनवरी की सुबह जब पता चला कि खेत में किसी व्यक्ति का शव पड़ा हैं (जो पहचान में नही आ रहा था) लोेग उसे पहचानने जा रहे थे। हमें लगा कि हमें भी जाना चाहिए और हम चले गये जाकर देखें तो उसे हम भी नही पहचान सके, लेकिन लग रहा था कि वो मेरा बेटा है, क्योकि कपड़ा से हम थोड़ा पहचान पाये थे। हम रोने लगे, लेकिन गाॅव वालों ने कहा कि पहले तुम वहाॅ पता करो, जहाँ तुम्हारा बेटा काम करता था।

हम घर आकर पत्नी को वहाॅ भेजे (बबुन साव के पत्थर खद्यान पर पुरनाडीह में जहाॅ बेटा काम करता था) उसे वहाॅ कोई नही मिला, फिर मेरी पत्नी किसी के मोबाईल से बबनु साव को फोन करके पुछी कि भोला कहाॅ है? उसका जवाब था कि वेा शाम 5 बजे घर चला गया। मेरी पत्नी भी रोते-रोते घर आई। हमें विश्वास हो गया कि वो मेरा ही बेटा है। पुलिस खेत से लाश को उठाकर थाने ले गई। हम अपने भतीजा लालमोहन के साथ थाना गये और वहाॅ जाकर पहचाने तो मेरा ही बेटा था। जब यह बात आग की तरह शहर में फैला तो थाने मे हजारों की भीड़ जमा हो गई। सुबह लगभग 9 बजे थाने मे डी0एस0पी0 आये और थाने के बड़ा बाबू को बोले कि फिल्ड चलिए, घटना की जानकारी लेते है। थाने से दो गाड़ी पुलिस चली जिसमे डी0एस0पी0 और बड़ा बाबू पुलिस बल के साथ चले, हमे डी0एस0पी0 के गाड़ी में बैठाया गया और जहाॅ लाश फेका था, हम वहाॅ गये। वहाॅ जा कर डी0एस0पी0 ने निरीक्षण किया तो पाया की इसे यहाॅ नही मारा गया है, 20 फीट के बगल में ही घर है, लोग रहते है, तो यहाॅ कैसे मारा जा सकता है। फिर डी0एस0पी0 बबून साव के खद्यान जाने के लिए तैयार हुए, जहाॅ मेरा बेटा भोला काम करता था। 2 द्य च् ं ह म

क्ण्ैण्च्ण् बबुन साव के खद्यान पर पहुचे तो बबुन साव पहले से वहाॅ मौजूद था। क्ण्ैण्च्ण् पुछा बबुन साव कौन है? इस पर बबुन साव बोला हम है, सर कुर्सी का व्यवस्था नही है। यहाॅ खद्यान पर क्ण्ैण्च्ण् बोला कोई बात नही, पता चला है कि भोला मेहता आपके ही खद्यान में काम करता था। बबुन साव हाॅ करता था, क्ण्ैण्च्ण् बोले वो मारा गया और आप उसे देखने तक नही गये। बबुन साव-वो वहाॅ से शाम 5 बजे ही चला गया था। क्ण्ैण्च्ण्.तो फिर आपको पता चला, आप देखने क्यो नहीं गये।

बबुन साव-यहाॅ काम ज्यादा था, इसलिए नही जा सके। क्ण्ैण्च्ण्. खद्यान को देखा और पुछा खद्यान के बीच में मिट्टी कहाॅ से आया। बबुन साव-सर बैंकर बनाकर पत्थर तोड़वाते है, इसलिए मिट्टी गिरवाये है। उसके इस बात पर हमे लगा कि सब काम डोजर (मिट्टी उठाने का गाड़ी) करता हैं कि वे बैंकर किसलिए।

क् ैण्च्ण्. उसे बगल वाले रूम मे खद्यान में काम कर रहे सभी मजदूर एवं बबुन साव को लाये और सबसे पुछ-ताछ किया। हम क्ण्ैण्च्ण् के गाड़ी के पास बैठे थे, अन्दर से निकले पर तीन लोग को क्ण्ैण्च्ण् गाड़ी में बैठाया और वहाॅ से चल दिये। (बबुन साव और दो लोग थे) गाड़ी महेशपुर चैक पर पहुॅची तो क्ण्ैण्च्ण् अचानक बोलता है, विश्वनाथ जी आप अपना समधी का घर जानते है। हम बोले सर हम जानते है और जानेगें क्यों नही, वहाॅ बेटी दिये है तो क्ण्ैण्च्ण् बोला चलिए आपके समधी के घर चलते है। वहाॅ से सिमरिया गये, वहाॅ जाने पर मेरा समधी घर में नही था। कुछ देर में पहुॅचे तो क्ण्ैण्च्ण् उनसे बात किये, हम गाड़ी में ही थे और बबुन साव भी गाड़ी में ही थे क्ण्ैण्च्ण्. क्या बात करके निकले किसी को पता नही चला। अचानक क्ण्ैण्च्ण् के मोबाईल पर थाना से फोन आया कि भीड़ काफी है। जल्दी थाना पहुँचिये, भीड़ नही सम्भल रहा है। इस पर क्ण्ैण्च्ण् बोला हम तुरंत पहुॅच रहे है। तब तक तुम लोग सम्भालों। क्ण्ैण्च्ण् थाना पहुॅचकर बबुन साव और विजय साव को अंदर ले गये हमे बाहर ही छोड़ दिया। कुछ ही देर में हमारे समाज के लोग हमसे पुछे कि कही हस्ताक्षर किये है क्या? हम बोले कही नही किये हैं तो उसने एक कागज दिया और हमसे हस्ताक्षर करवा के अंदर दे दिया और वो लोग कह रहे थें कि इसी बात पर केस करना है और इसी के आधार पर लड़ना है। हमकों समझ में नही आ रहा था कि लड़ने का क्या आधार बना है, क्योंकि हम कम पढ़े लिखे थे। 3 द्य च् ं ह म

थाने के बड़ा बाबू से बात करके 26 तारीक के शाम को 5 बजे लाश घर ले आये और तब से मेरे घर परिवार वालों का रोना-धोना शुरू था, सो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी पत्नी बार-बार बेहोश हो जा रही थी।

दुसरे दिन घर में सबका हालत खराब था। हम अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे, तभी अचानक 2 बजे के लगभग बबुन साव के यहाॅ काम करने वाली एक औरत हमारे यहाॅ आई वो भी रोने लगी और रोते-रोते मेरी पत्नी को चुप कराई तब तक उसके मोबाईल पर बबुन साव का फोन आया और पुछा वहाॅ गई, तो बताई, हम यही है। बबुन साव बोला उसकी माॅ से बात करवावो, तो मेरी पत्नी को फोन देकर बोली कि बबुन साव कुछ बोल रहा है। (फोन स्पीकर पर करने पर) बबुन साव बोला कि जो हमसे गलती हुआ माफ कर दो, मेरा इज्जत रख दो, तुम्हारा ही रिश्ता परिवार से हम ज्यादा मानेंगे और देते लेते रहेंगे। वो इतना ही बोल पाया था कि हम फोन लेना चाहे, लेकिन वो तुरंत मेरी पत्नी के हाॅथ से मोबाईल लेकर फोन काट दी और तुरंत यहाॅ से चली गई।

हम लोग इंतजार मे थे कि कुछ निर्णय आयेगा, क्योंकि बबुन साव के खद्यान के पास इसी घटना को लेकर बैठक था और हमारे घर परिवार से भी कुछ लोग गये थे, लेकिन वहाॅ क्या हुआ हमे पता नही चला, इतना जानते है कि वहाॅ पुलिस पहुॅचा और हमारे दमाद को उठाकर चल दिया और उसे थाने में बंद कर दिया। हमलोग शाम को लगभग 3 बजे दाह संस्कार के लिए चले गये। क्रियाक्रम तक कुछ नही हुआ तो फिर हम समाज से बात किये, तो समाज जाकर बबुन साव के मकान निर्माण का काम रूकवा दिया। इस पर बबुन साव बोला आप जो कहिएगा, हम मानने के लिए तैयार है, बैठकर निर्णय ले लिजिए। इस बात पर हमारा समाज बोला दोनों तरफ से पाॅच-पाॅच आदमी बैठकर निर्णय किजिएगा, तीन से चार बार बैठक टलने पर पाॅचवी बार बैठक हुई। बैठक अशोक साव के घर में रखा गया। बबुन साव के तरफ से पच्चीस आदमी थे और मेरे तरफ से पाॅच आदमी। पंच ने हमसे पुछा कि आप क्या कहते हैं कहिए हम कहे कि मेरा बेटा पिछले तीन माह से 2000/- दो हजार रूपये पर इनके डोजर गाड़ी में काम करता था। जब भी घर आता था तो फोन करके और गाड़ी भेजकर बुला लेते थे, लेकिन उसदिन न ही बुलाने आये न कुछ किये। इससे हमे 4 द्य च् ं ह म

लगता है कि मेरा बेटा की खद्यान में ही मारकर, खेत में लाकर फेक दिये। इसके बाद मेरे घर एक औरत को भेजकर फोन पर इस तरह बोले। पंच उनसे पुछा कि जब आपको पता चला कि भोला मर गया तो आप देखने क्यों नही गये। इस बात पर बबुन साव बोला कि मेरा मुंशी का कोर्ट मे हाजरी था, तो वही गये थे। इस कारण नही जा सके (पंच बोला 26 जनवरी के दिन भी कोर्ट खुला रहता है क्या) इसी बात पर पुरा बहस हुआ और पंच गुस्सा हुए और अंतिम निर्णय यह निकला कि इक्यासी हजार (81,000/-) रूपया दे कर मामला खत्म किया जाये, लेकिन हमे सब चालीस हजार (40,000/-) रुपये देकर यह बोल दिया गया कि केस खत्म होने पर पैसा देंगे। हम मन को मरोड़कर रह गये, क्या करते वो पैसा वाले लोग है उनके सामने हमारी क्या किमत है। जब मेरा दामाद जेल से छूटा तो उससे बात करने पर वो बताया कि 25 तारीक के शाम को मेरा मोबाईल पर भोला के मोबाईल से फोन गया कि तुम और हम वहाॅ गये, तो बबुन साव शराब पिलाया और इसके मरने की बात बताई, हमें गाड़ी में बैठाया गया और फिर कहाॅ-कहाॅ ले गया होश नही था। पुलिस हमे लेकर फिर खदान गया था, अंदर मे उसे दो तीन जगह खुन के छिटे दिखे पर वो फिर हमे गाड़ी मे बैठाकर थाना ले गया था। यह सब सुनकर मैं अधमरा हो गया, न कुछ कर पाता हूॅ और न घर का खर्च चला पता हूँ।

मेरी हालत इतनी खराब हो गई है, कि मैं क्या कहूॅ आपकों। आज हमे लग रहा है कि आप यह सब जान और सुनकर हमारे लिए कुछ करियेगा और हमें उम्मीद जगी है और हमे न्याय मिलेगा।

‘‘जब पति ने मारा और सास सलाई....


मेरा नाम पुतूल देवी, उम्र-28 वर्ष है। मैं ग्राम-चुटियारो, पोस्ट-चुटियारों, थाना-जयनगर प्रखण्ड जयनगर, जिला-कोडरमा (झारखण्ड) की मूल निवासी हूँ।

घटना तब की है जब शादी के दो तीन माह बाद एक बार हम घर में रोटी बना रहे थे, उस समय मेरी सास पुछी-रोटी बना कि नही, उस समय दो तीन रोटी बनाने को बाकी थी। मेरी साॅस जाकर सो गई, हम जाकर खाना खाने के लिये कहे,ं हाॅथ पकड़े, पैर पकड़े, पर वो नही खाई। मैं पैर में तेल लगाने गयी तो वो भी नही लगाई। दिन में मेरी साॅस मेरे पति को बढ़ा-चढ़ाकर सुना रही थी। अचानक मेरे पति उठे और हाॅथ और लात से मारकर मेरा पुरा मुॅह, कान फुला दिये।

उसके बाद मैं खूब रोई, चिल्लाई, लेकिन कोई नहीं सुना। शाम को मेरी साॅस डाक्टर के पास ले गई और डाक्टर को बोली कि सीढ़ी से गिर गई। इस तरह तब से हमेशा मेरे साथ होने लगा। हमे घर से निकलने तक नही दिया जाता था, जहाॅ जाती थी, वहाॅ मेरी साॅस पीछे-पीछे जाती थी। मैं कुछ दिनों के लिए मायके चली आई। जब मेरे पति हमे लेने आये और जब शाम को ले जा रहे थे, तो बोले चलो न नास्ता में रोज मार ही मीलेगा। इस बात को हम ध्यान मंे नही लिये और पति के साथ अपने ससुराल चले गये। वहाॅ गये तो साॅस गाली देने लगी और मेरे पति को यह कहकर सुनाने लगी कि लड़का रखी है, उससे बात करती है, दोस्त बनाई है, इस तरह बोल के कान भर दी, उसी समय सबके सामने बैठाकर भद्दी-भद्दी गाली भी दी, यह मेरे बर्दास्त से बाहर हो गया।

मै बहुत रोई और इतना सहने से अच्छा मर जाना उचित समझी और अपने रूम में आकर बुखार की गोली खा लिया और घर (मायके) फोन करके बोली कि आप लोग आईये, ये लोग हमे मार रहे है। इतना फोन करते देख मेरे पति हमें बहुत मारे, उनके मार व दवा के असर से हम बेहोश हो गये तब तक हमारे घर वाले पहुॅचे हमारे साॅस व ननद मिलकर मेरी माॅ और बहन को बहुत मारी और घर से निकाल दिया। हमें एक खाट पर लिटाकर खाट के नीचे आग का (बोरसी) हॅड़ीया रखकर उसमे मिर्च देकर जला रहे थे, मिर्च के गंध से मैं छिकती थी तो मेरी साॅस मेरे मुॅह पर पानी का छिटा मारते थे। 2 द्य च् ं ह म

डाक्टर को देखने के लिए बुलाये तो डाक्टर बोला ठीक है बेहोश हो गई है। यह सुनकर मेरी साॅस आग में छोलनी (सब्जी बनाने वाला) से मेरी पैर में दाग दिया, जिससे मेरा दोनो पैर जला गया, मेरा बाल जला दी, यह बोलकर कि इसको भुत पकड़ लिया है। तब तक पुलिस पहुँची और हमें लाकर नर्सिग होम पार्वती क्लिनिक में भर्ती कराकर इलाज कराया तब जाकर हमें दिन के 9 बजे तक होश आया, मैं 10 बजे रात बेहोश हो गई थी और होश आने पर हमे पता चला कि हमारे साथ इस तरह घटना घटी।

आपको घटना के बारे मे बताकर ऐसा लग रहा है कि हमारे ऊपर जो जुल्म हुआ है, उससे मुझे न्याय मिलेगा और मेरा घर परिवार ठीक हो जायेगा।

घरेलू हिंसा की शिकार निर्दोष महिला और उसके बच्चे’’


मेरा नाम दारो देवी, उम्र-50 वर्ष है। मेरे पति का नाम श्री सोना यादव, उम्र-55 वर्ष है। मैं ग्रामा व पोस्ट-पथलडीहा, थाना-कोडरमा, जिला-कोडरमा (झारखण्ड) की निवासी हूँ। मेरी बेटी उषा, उम्र-18 वर्ष और एकलौता बेटा उपेन्द्र, उम्र-15 वर्ष साथ में रहते है। अभी मेरे दोनों बेटा-बेटी पढ़ते है। हम लगभग 15-20 वर्ष पहले से अब तक अपनी जेठानी के घर में साथ-साथ रहते है। उन्ही के तरफ से खाते-पीते भी है।

हमारे साथ उत्पीड़न शादी के ठीक एक-दो साल बाद से शुरू हुआ, जो अभी तक चल रहा है। आजतक मैं कभी भी ससुराल में सुखी का जीवन नहीं बिता पायी। हमारे पति हमारे हाथ का दिया खाना नही खाते थे और हमारी जेठानी जब देती थी तभी खाते थे। कभी भी मुझे खाने के लिए नहीं पूछा जाता था और जब मैं खाने के लिए बैठती थी तो मुझे खाने के लिए नहीं दिया जाता था। मेरी थाली गोतनी बगैरह छिन लेती थी और पैर बगैरह से मेरे पति मार देने थे और मुझे जानवर बगैरह चराने के लिए भूखे प्यासे जंगल भेज देेते थे और जब मैं शाम को वापस आती थी तो मुझे खाना बगैरह छुने नहीं दिया जाता था। खाना खाकर वे लोग खाना छुपा देते थे और जब मैं खाना माँगती या खाना बनाने के लिए जाती तो हमारे पति, जेठानी का बड़ा बेटा और बेटी सब लोग मिलकर मुझे मारते-पीटते और खराब-खराब गालियाॅ सुनाते थे और मैं चुप रहती थी। किसी से कुछ भी नही कहती थी और सब सहती रही, लेकिन जब मेरी दो बेटीयाॅ हुई तब भी हमारे पति हमारे साथ खाने-पीने नहीं देने लगे और बेटीयों के साथ भी हमारे जैसा ही व्यवहार करने लगे जब हमसे यह देखा नही गया। जब वे लोग हमें और हमारी बेटीयों को ज्यादा मारते-पीटते तो हम अपने मायके चले जाते और वही पर बच्चों को पालते। फिर कुछ दिनों के बाद आ जाते। ऐसा हमारे साथ हमेशा होता। मैेने कई बार पंचायत किया, लेकिन उसका कोई फायदा नही हुआ। मैं एक बार केस भी किया, जिसमें मेरे एक हजार रुपये जो थे, वो खर्च हो गये, लेकिन उससे भी हमें कोई न्याय नहीं मिला तो फिर हम छोड़ दिये।

हमे सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुआ जब मेरा एक बेटा होने के बाद मेरे पति जेठानी के कहने पर एक-एक कर लाखों का जमीन बेच डाले और सारा पैसा जेठानी को देने लगे और जब मैं इसका विरोध किया तो वे लोग कहते है कि हिस्सेदार पैदा की है, तुम्हे हिस्सा नहीं मिलेगा। ज्यादा चिल्लायेगी तो तुम्हे मार देंगे और एक दिन लगभग 2008-2009 में मेरे पति, मेरी जेठानी और उसके बेटा-बेटी और बहु सब मिलकर हमे लात, घुसें और लाठी, जो जिसके जी में आया हमें पकड़कर मारे और 2 द्य च् ं ह म

सभी भद्दी-भद्दी गालियाॅ देते। मैं बहुत रोयी, चिल्लाई और खूब गिड़गिड़ाई, लेकिन वे लोग मुझे तब तक नहीं छोड़े, जब तक कि मैं पूरा अधमरा न हो गई। मेरा जेठ बेटा एक लाठी से मेरी बायीं हाथ में ऐसा मारा कि मेरे हाथ में अभी भी लाठी का निशान है और पूरा शरीर आज भी दर्द करता है। मेरा हाथ सही से काम नहीं करता है। मेरा हाथ पूरा उठता नहीं है। मेरे शरीर में बहुद दर्द बना रहता है। मेरे पूरे शरीर में मार के बहुत दाग है। अभी मैं दर्द के कारण पूरा मजदूरी भी नहीं कर पाती हूॅ। किसी तरह मैं ईंट भट्ठे में काम करके अपने बेटा-बेटी और अपना पेट चलाती हूँ, लेकिन अब मुझसे नही सहा जाता है। खाना भी नही खा पाती हूँ जब याद आता है कि मेरा पति हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता है। किसी का पति मर जाता है तो उसके साथ ऐसा नहीं होता है, लेकिन हमारे पति तो जिन्दा है और सामने खड़ा होकर हमे मरवाते है। हमें दुःख इस बात का है कि मेरा पति हमें खाने के लिए एक दाना तक नहीं देता है और अपना पूरा कमाई जेठानी को दे देता है, सोचती हॅू अपनी बेटी की शादी कैसे करूॅगी, सहयोग कौन करेगाॅ, पैसे कहाॅ से लाऊॅगी। यह सब देखकर मेरा आत्मा कलप जाता है। हमें लगता है कि धरती फट जाता और हम समा जाते या फिर जहर खाकर मर जाते, लेकिन फिर सोचती हॅू कि बच्चे कैसे रहेंगे, इनकी देखभाल कौन करेगाॅ। यही सब सोचकर मेैं जिंदा लाश की तरह जी रही हूॅ और सबका अत्याचार सह रही हूॅ तो सिर्फ अपने बेटा-बेटी के लिए, क्योंकि मैं मरूॅगी तो ये लोग इन्हे मार देंगें क्योंकि ये लोग हमें हिस्सा नहीं देना चाहते है।

आपकों अपनी घटना बताकर मुझे यह लग रहा है कि अब हमारे लिए कुछ करियेगा, क्योंकि आज तक मेरे अन्दर छिपे दर्द को कोई नही सुना हूॅ। आप लोग हमारी बात को सुने तो मेरे दिल को थोड़ा आराम और सुकून मिला है।


‘‘पैसा भी गया, बेटा भी गया, डाक्टर माला-माल हुआ...’’



मेरा नाम दरवा देवी, उम्र-26 वर्ष है। मेरे पति का नाम सुरेन्द्र दास है। मैं ग्राम-भेलवाटांड, पोस्ट-डोमचाॅच, थाना-डोमचाॅच, जिला-कोडरमा का मूल निवासी हूँ।

घटना उस दिन की है, जब मेरा बेटा राहुल घर के बाहर सुबह 7ः बजे खेलते-खेलते मुॅह धो रहा था। उस दौरान उसका एक दात टूट गया और दात से बहुत ज्यादा खून बहने लगा। खून रूकने का नाम नही ले रहा था। उस समय हम अपने बेटे को लेकर पास के ही स्थानीय डाक्टर बब्बुन के पास ले गये, डाक्टर ने उसे एक सुई दिया और राहुल को दात के डाक्टर से दिखाने को कहा। मैं उसे डोमचाॅच में दात के डाक्टर के पास ले गई, हमारे पति भी साथ में गये थे। दात वाला डाक्टर मेरा राहुल को देखकर उसे दंत बेड पर लिटा दिया और दात में लगा खून साफ किया। उसके बाद दवा लगाया, लेकिन खुन रूकने का नाम नही ले रहा था। यह देखकर मैं रो रही थी। डाक्टर ने बेेटे को एक गोली खिलाने को कहा, मैं अपने हाथ से बेटे को एक गोली खिलाई। उसके बाद भी खुन नही नहीं रूका। यह देखकर मैं और रो पड़ी। डाक्टर से पुछने पर उसने कहा कि इसको बुखार है, जिसके कारण खून नही रूक रहा है, इसे फ्रुटी पिलाआंे। मैं अपने पिता से फ्रुटी लाने को कही, लेकिन हमे लगा कि इससे अच्छा नही होगा, यह सोचकर मैं नही पिलाई और बेटे का खून का जाँच करवाने चली गई। खून जाँच से पता चला कि बेटा के शरीर में खून की कमी है। इसके बाद मैं अपने बेटे को डा0 विकास चंद्रा के पास ले गई, जो (बच्चा का डाक्टर हैं) मैं मन ही मन सोच रही थी कि ठीक होगा कि नही, यह सोचकर मैं कम्पाण्डर से पुछी कि भैया ठीक हो जायेगा ना मेरा बेटा घ् इस पर उसने डाँटते हुए कहा कि आप कैसे जानती है, ठीक होगा कि नही। डाक्टर हम है या आपघ् यह कहते हुए उसने हमे बैठने को कहा और बेटे को एक सुई लगाकर सात सौ रूपये (700/-) का दवा दे दिया और तीन दिन बाद आने का कहा, दिल में थोड़ा तस्सली हुआ। घर चले आये, उसी दिन राम के बेटा का और जोर से तबियत खराब हो गया। रात 12 बजे गाड़ी रिजर्व करके घर से 25 कि0मी0 दूर तिलैया में डा0 नरेश पंडित के पास ले आई (जो बच्चा के मामले के शहर का सबसे बड़ा डाक्टर है)। 2 द्य च् ं ह म

जब वहाँ पहँुचे तो कम्पाण्डर गेट नही खोल रहे थे, कह रहे थे हम भर्ती नही लेगें और उसने डाँटते हुए डाक्टर के पास जाने को कहा, डाक्टर का घर पुछने पर कहा कि कुछ दूर पर है चले जाओ और हम खोजते-खोजते गये। डाक्टर के घर पहुँचकर उसका दरवाजा खट-खटाये, वो बाहर आ गये, उसने भी डाँटते हुए कहा कि इतना रात को सब चले आते है, अभी भर्ती नही लेगें, सुबह आना। हम हाथ जोड़ने लगे और गिड़गिड़ाने लगे। उसने बिना देखे कागज पर लिख के दे दिया और कम्पाण्डर को फोन कर दिया, भर्ती ले लेने को कहा। जब अस्पताल गये तो भर्ती लेकर एक बोतल पानी लगा कर छोड़ दिया।

डा0 नरेश पंडित सुबह नौ बजे अस्पताल पहुँचे, तब उसने जाकर देखा कि क्या हुआ। कुछ देर बाद डाक्टर बोला खून चढ़ाना पडे़गा। इस पर हमारे पति बाजार से खून खरीदकर लाकर दिये तो वो चढ़ाया। उसके कुछ देर बाद मेरा बेटा ठीक होने लगा। उस समय मेरे आँसू रूके थे। मन में उम्मीद जागा था कि अब मेरा बेटा ठीक हो जायेगा, पुरा इलाज होने के तीसरे दिन जब डा0 नरेश पंडित ने रिपोर्ट देखा तो बोला कि आप अपने मर्जी से बच्चा ले जाइयेगा तो हम उसका जवाब देही नहीं लेगें। बच्चा को और खुन चढ़ाना पडे़गा। यह सुनकर हमारे होश उड़ गये, क्योंकि पैसा कर्ज ले कर गये थे और पहले से ही 12000/- से 15000/- तक खर्च हो चुका था, फिर हमारे पति ने बेटा को अपना खून दिया। उसके बाद मेरा बेटा खाना माँगने लगा, इस पर डा0 से पुछकर हमने उसे खाना दिया।

जब घर जाने की बारी आई तो डाक्टर को पैसा देने गये तो उसने सोलह हजार रूपये (16,000/-) के बिल दिये, हमने डाक्टर से कहा सर कुछ पैसा लेकर छोड़ दीजिए, गरीब है, पैसा कर्ज लेकर आये है। इस बात पर उसने कहा कि तुमको तो खुश होकर हमे और देना चाहिए। हम एक पैसा नही छोड़ेगें। इतना व्यवस्था और दवा अपने घर में नही बनाते है। आपका तकदीर अच्छा है, जो ठीक हो गया। घर आने पर बेटा दो दिन ठीक रहा और अचानक रात के 11 बजे लगभग बेटे की मृत्यु हो गई। हमे लगा कि मेरा सब कुछ खो गया, पैसा भी गया, बेटा भी गया। मन में डाक्टर पर गुस्सा आ रहा था कि वो किस तरह इलाज किया, हमारे दिमाग में यह दौड़ रहा था कि डाक्टर बोला था, हम एक पैसा नही छोड़ेगे, खुशी से तुमको और देना चाहिए। मैं रो भी रही थी, रोते-रोते सोच रही थी, ये मर कैसे गया। 3 द्य च् ं ह म

इस घटना के बाद हमे कही जाने-आने का मन नही करता है। कभी-कभी गाॅव वाले भी बोल देते है देखों ना बेटा मर गया। उस समय मेरी आत्मा और टूट जाती है और डाक्टर पर गुस्सा आता है। कर्ज का बोझ लदा है, रोज महाजन घर में आकर गाली देता है। हमारे पति मजदूरी करते है, लेकिन इतना पैसा से सिर्फ घर चलता है, कर्ज का ब्याज बढ़ता जा रहा है। इससे मेरी चिंता और बढ़ रही है। आपको अपनी कहानी बताकर हमे अच्छा लग रहा है, हमारी पीड़ा को भी कोई सुनने वाला है और हमें विष्वास है कि आप हमारी सहायता जरूर करंेगे।