Friday, 1 July 2011

‘‘पैसा भी गया, बेटा भी गया, डाक्टर माला-माल हुआ...’’



मेरा नाम दरवा देवी, उम्र-26 वर्ष है। मेरे पति का नाम सुरेन्द्र दास है। मैं ग्राम-भेलवाटांड, पोस्ट-डोमचाॅच, थाना-डोमचाॅच, जिला-कोडरमा का मूल निवासी हूँ।

घटना उस दिन की है, जब मेरा बेटा राहुल घर के बाहर सुबह 7ः बजे खेलते-खेलते मुॅह धो रहा था। उस दौरान उसका एक दात टूट गया और दात से बहुत ज्यादा खून बहने लगा। खून रूकने का नाम नही ले रहा था। उस समय हम अपने बेटे को लेकर पास के ही स्थानीय डाक्टर बब्बुन के पास ले गये, डाक्टर ने उसे एक सुई दिया और राहुल को दात के डाक्टर से दिखाने को कहा। मैं उसे डोमचाॅच में दात के डाक्टर के पास ले गई, हमारे पति भी साथ में गये थे। दात वाला डाक्टर मेरा राहुल को देखकर उसे दंत बेड पर लिटा दिया और दात में लगा खून साफ किया। उसके बाद दवा लगाया, लेकिन खुन रूकने का नाम नही ले रहा था। यह देखकर मैं रो रही थी। डाक्टर ने बेेटे को एक गोली खिलाने को कहा, मैं अपने हाथ से बेटे को एक गोली खिलाई। उसके बाद भी खुन नही नहीं रूका। यह देखकर मैं और रो पड़ी। डाक्टर से पुछने पर उसने कहा कि इसको बुखार है, जिसके कारण खून नही रूक रहा है, इसे फ्रुटी पिलाआंे। मैं अपने पिता से फ्रुटी लाने को कही, लेकिन हमे लगा कि इससे अच्छा नही होगा, यह सोचकर मैं नही पिलाई और बेटे का खून का जाँच करवाने चली गई। खून जाँच से पता चला कि बेटा के शरीर में खून की कमी है। इसके बाद मैं अपने बेटे को डा0 विकास चंद्रा के पास ले गई, जो (बच्चा का डाक्टर हैं) मैं मन ही मन सोच रही थी कि ठीक होगा कि नही, यह सोचकर मैं कम्पाण्डर से पुछी कि भैया ठीक हो जायेगा ना मेरा बेटा घ् इस पर उसने डाँटते हुए कहा कि आप कैसे जानती है, ठीक होगा कि नही। डाक्टर हम है या आपघ् यह कहते हुए उसने हमे बैठने को कहा और बेटे को एक सुई लगाकर सात सौ रूपये (700/-) का दवा दे दिया और तीन दिन बाद आने का कहा, दिल में थोड़ा तस्सली हुआ। घर चले आये, उसी दिन राम के बेटा का और जोर से तबियत खराब हो गया। रात 12 बजे गाड़ी रिजर्व करके घर से 25 कि0मी0 दूर तिलैया में डा0 नरेश पंडित के पास ले आई (जो बच्चा के मामले के शहर का सबसे बड़ा डाक्टर है)। 2 द्य च् ं ह म

जब वहाँ पहँुचे तो कम्पाण्डर गेट नही खोल रहे थे, कह रहे थे हम भर्ती नही लेगें और उसने डाँटते हुए डाक्टर के पास जाने को कहा, डाक्टर का घर पुछने पर कहा कि कुछ दूर पर है चले जाओ और हम खोजते-खोजते गये। डाक्टर के घर पहुँचकर उसका दरवाजा खट-खटाये, वो बाहर आ गये, उसने भी डाँटते हुए कहा कि इतना रात को सब चले आते है, अभी भर्ती नही लेगें, सुबह आना। हम हाथ जोड़ने लगे और गिड़गिड़ाने लगे। उसने बिना देखे कागज पर लिख के दे दिया और कम्पाण्डर को फोन कर दिया, भर्ती ले लेने को कहा। जब अस्पताल गये तो भर्ती लेकर एक बोतल पानी लगा कर छोड़ दिया।

डा0 नरेश पंडित सुबह नौ बजे अस्पताल पहुँचे, तब उसने जाकर देखा कि क्या हुआ। कुछ देर बाद डाक्टर बोला खून चढ़ाना पडे़गा। इस पर हमारे पति बाजार से खून खरीदकर लाकर दिये तो वो चढ़ाया। उसके कुछ देर बाद मेरा बेटा ठीक होने लगा। उस समय मेरे आँसू रूके थे। मन में उम्मीद जागा था कि अब मेरा बेटा ठीक हो जायेगा, पुरा इलाज होने के तीसरे दिन जब डा0 नरेश पंडित ने रिपोर्ट देखा तो बोला कि आप अपने मर्जी से बच्चा ले जाइयेगा तो हम उसका जवाब देही नहीं लेगें। बच्चा को और खुन चढ़ाना पडे़गा। यह सुनकर हमारे होश उड़ गये, क्योंकि पैसा कर्ज ले कर गये थे और पहले से ही 12000/- से 15000/- तक खर्च हो चुका था, फिर हमारे पति ने बेटा को अपना खून दिया। उसके बाद मेरा बेटा खाना माँगने लगा, इस पर डा0 से पुछकर हमने उसे खाना दिया।

जब घर जाने की बारी आई तो डाक्टर को पैसा देने गये तो उसने सोलह हजार रूपये (16,000/-) के बिल दिये, हमने डाक्टर से कहा सर कुछ पैसा लेकर छोड़ दीजिए, गरीब है, पैसा कर्ज लेकर आये है। इस बात पर उसने कहा कि तुमको तो खुश होकर हमे और देना चाहिए। हम एक पैसा नही छोड़ेगें। इतना व्यवस्था और दवा अपने घर में नही बनाते है। आपका तकदीर अच्छा है, जो ठीक हो गया। घर आने पर बेटा दो दिन ठीक रहा और अचानक रात के 11 बजे लगभग बेटे की मृत्यु हो गई। हमे लगा कि मेरा सब कुछ खो गया, पैसा भी गया, बेटा भी गया। मन में डाक्टर पर गुस्सा आ रहा था कि वो किस तरह इलाज किया, हमारे दिमाग में यह दौड़ रहा था कि डाक्टर बोला था, हम एक पैसा नही छोड़ेगे, खुशी से तुमको और देना चाहिए। मैं रो भी रही थी, रोते-रोते सोच रही थी, ये मर कैसे गया। 3 द्य च् ं ह म

इस घटना के बाद हमे कही जाने-आने का मन नही करता है। कभी-कभी गाॅव वाले भी बोल देते है देखों ना बेटा मर गया। उस समय मेरी आत्मा और टूट जाती है और डाक्टर पर गुस्सा आता है। कर्ज का बोझ लदा है, रोज महाजन घर में आकर गाली देता है। हमारे पति मजदूरी करते है, लेकिन इतना पैसा से सिर्फ घर चलता है, कर्ज का ब्याज बढ़ता जा रहा है। इससे मेरी चिंता और बढ़ रही है। आपको अपनी कहानी बताकर हमे अच्छा लग रहा है, हमारी पीड़ा को भी कोई सुनने वाला है और हमें विष्वास है कि आप हमारी सहायता जरूर करंेगे।

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