Friday, 1 July 2011

घरेलू हिंसा की शिकार निर्दोष महिला और उसके बच्चे’’


मेरा नाम दारो देवी, उम्र-50 वर्ष है। मेरे पति का नाम श्री सोना यादव, उम्र-55 वर्ष है। मैं ग्रामा व पोस्ट-पथलडीहा, थाना-कोडरमा, जिला-कोडरमा (झारखण्ड) की निवासी हूँ। मेरी बेटी उषा, उम्र-18 वर्ष और एकलौता बेटा उपेन्द्र, उम्र-15 वर्ष साथ में रहते है। अभी मेरे दोनों बेटा-बेटी पढ़ते है। हम लगभग 15-20 वर्ष पहले से अब तक अपनी जेठानी के घर में साथ-साथ रहते है। उन्ही के तरफ से खाते-पीते भी है।

हमारे साथ उत्पीड़न शादी के ठीक एक-दो साल बाद से शुरू हुआ, जो अभी तक चल रहा है। आजतक मैं कभी भी ससुराल में सुखी का जीवन नहीं बिता पायी। हमारे पति हमारे हाथ का दिया खाना नही खाते थे और हमारी जेठानी जब देती थी तभी खाते थे। कभी भी मुझे खाने के लिए नहीं पूछा जाता था और जब मैं खाने के लिए बैठती थी तो मुझे खाने के लिए नहीं दिया जाता था। मेरी थाली गोतनी बगैरह छिन लेती थी और पैर बगैरह से मेरे पति मार देने थे और मुझे जानवर बगैरह चराने के लिए भूखे प्यासे जंगल भेज देेते थे और जब मैं शाम को वापस आती थी तो मुझे खाना बगैरह छुने नहीं दिया जाता था। खाना खाकर वे लोग खाना छुपा देते थे और जब मैं खाना माँगती या खाना बनाने के लिए जाती तो हमारे पति, जेठानी का बड़ा बेटा और बेटी सब लोग मिलकर मुझे मारते-पीटते और खराब-खराब गालियाॅ सुनाते थे और मैं चुप रहती थी। किसी से कुछ भी नही कहती थी और सब सहती रही, लेकिन जब मेरी दो बेटीयाॅ हुई तब भी हमारे पति हमारे साथ खाने-पीने नहीं देने लगे और बेटीयों के साथ भी हमारे जैसा ही व्यवहार करने लगे जब हमसे यह देखा नही गया। जब वे लोग हमें और हमारी बेटीयों को ज्यादा मारते-पीटते तो हम अपने मायके चले जाते और वही पर बच्चों को पालते। फिर कुछ दिनों के बाद आ जाते। ऐसा हमारे साथ हमेशा होता। मैेने कई बार पंचायत किया, लेकिन उसका कोई फायदा नही हुआ। मैं एक बार केस भी किया, जिसमें मेरे एक हजार रुपये जो थे, वो खर्च हो गये, लेकिन उससे भी हमें कोई न्याय नहीं मिला तो फिर हम छोड़ दिये।

हमे सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुआ जब मेरा एक बेटा होने के बाद मेरे पति जेठानी के कहने पर एक-एक कर लाखों का जमीन बेच डाले और सारा पैसा जेठानी को देने लगे और जब मैं इसका विरोध किया तो वे लोग कहते है कि हिस्सेदार पैदा की है, तुम्हे हिस्सा नहीं मिलेगा। ज्यादा चिल्लायेगी तो तुम्हे मार देंगे और एक दिन लगभग 2008-2009 में मेरे पति, मेरी जेठानी और उसके बेटा-बेटी और बहु सब मिलकर हमे लात, घुसें और लाठी, जो जिसके जी में आया हमें पकड़कर मारे और 2 द्य च् ं ह म

सभी भद्दी-भद्दी गालियाॅ देते। मैं बहुत रोयी, चिल्लाई और खूब गिड़गिड़ाई, लेकिन वे लोग मुझे तब तक नहीं छोड़े, जब तक कि मैं पूरा अधमरा न हो गई। मेरा जेठ बेटा एक लाठी से मेरी बायीं हाथ में ऐसा मारा कि मेरे हाथ में अभी भी लाठी का निशान है और पूरा शरीर आज भी दर्द करता है। मेरा हाथ सही से काम नहीं करता है। मेरा हाथ पूरा उठता नहीं है। मेरे शरीर में बहुद दर्द बना रहता है। मेरे पूरे शरीर में मार के बहुत दाग है। अभी मैं दर्द के कारण पूरा मजदूरी भी नहीं कर पाती हूॅ। किसी तरह मैं ईंट भट्ठे में काम करके अपने बेटा-बेटी और अपना पेट चलाती हूँ, लेकिन अब मुझसे नही सहा जाता है। खाना भी नही खा पाती हूँ जब याद आता है कि मेरा पति हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता है। किसी का पति मर जाता है तो उसके साथ ऐसा नहीं होता है, लेकिन हमारे पति तो जिन्दा है और सामने खड़ा होकर हमे मरवाते है। हमें दुःख इस बात का है कि मेरा पति हमें खाने के लिए एक दाना तक नहीं देता है और अपना पूरा कमाई जेठानी को दे देता है, सोचती हॅू अपनी बेटी की शादी कैसे करूॅगी, सहयोग कौन करेगाॅ, पैसे कहाॅ से लाऊॅगी। यह सब देखकर मेरा आत्मा कलप जाता है। हमें लगता है कि धरती फट जाता और हम समा जाते या फिर जहर खाकर मर जाते, लेकिन फिर सोचती हॅू कि बच्चे कैसे रहेंगे, इनकी देखभाल कौन करेगाॅ। यही सब सोचकर मेैं जिंदा लाश की तरह जी रही हूॅ और सबका अत्याचार सह रही हूॅ तो सिर्फ अपने बेटा-बेटी के लिए, क्योंकि मैं मरूॅगी तो ये लोग इन्हे मार देंगें क्योंकि ये लोग हमें हिस्सा नहीं देना चाहते है।

आपकों अपनी घटना बताकर मुझे यह लग रहा है कि अब हमारे लिए कुछ करियेगा, क्योंकि आज तक मेरे अन्दर छिपे दर्द को कोई नही सुना हूॅ। आप लोग हमारी बात को सुने तो मेरे दिल को थोड़ा आराम और सुकून मिला है।


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