मेरा नाम विश्वनाथ मेहता, उम्र-45 वर्ष है। मेरे पिता का नाम स्व0 झरी मेहता है। मैं ग्राम-तेतरियाडीह, पोस्ट-डोमचाॅच, थाना-डोमचाॅच, जिला-कोडरमा का मूल निवासी हूँ।
घटना उन दिनों की है जब 26 जनवरी 2011 को पुरा देश गणतंत्र दिवस में झुम रहा था और मेरे घर मे मातम का आलम था। 26 जनवरी की सुबह जब पता चला कि खेत में किसी व्यक्ति का शव पड़ा हैं (जो पहचान में नही आ रहा था) लोेग उसे पहचानने जा रहे थे। हमें लगा कि हमें भी जाना चाहिए और हम चले गये जाकर देखें तो उसे हम भी नही पहचान सके, लेकिन लग रहा था कि वो मेरा बेटा है, क्योकि कपड़ा से हम थोड़ा पहचान पाये थे। हम रोने लगे, लेकिन गाॅव वालों ने कहा कि पहले तुम वहाॅ पता करो, जहाँ तुम्हारा बेटा काम करता था।
हम घर आकर पत्नी को वहाॅ भेजे (बबुन साव के पत्थर खद्यान पर पुरनाडीह में जहाॅ बेटा काम करता था) उसे वहाॅ कोई नही मिला, फिर मेरी पत्नी किसी के मोबाईल से बबनु साव को फोन करके पुछी कि भोला कहाॅ है? उसका जवाब था कि वेा शाम 5 बजे घर चला गया। मेरी पत्नी भी रोते-रोते घर आई। हमें विश्वास हो गया कि वो मेरा ही बेटा है। पुलिस खेत से लाश को उठाकर थाने ले गई। हम अपने भतीजा लालमोहन के साथ थाना गये और वहाॅ जाकर पहचाने तो मेरा ही बेटा था। जब यह बात आग की तरह शहर में फैला तो थाने मे हजारों की भीड़ जमा हो गई। सुबह लगभग 9 बजे थाने मे डी0एस0पी0 आये और थाने के बड़ा बाबू को बोले कि फिल्ड चलिए, घटना की जानकारी लेते है। थाने से दो गाड़ी पुलिस चली जिसमे डी0एस0पी0 और बड़ा बाबू पुलिस बल के साथ चले, हमे डी0एस0पी0 के गाड़ी में बैठाया गया और जहाॅ लाश फेका था, हम वहाॅ गये। वहाॅ जा कर डी0एस0पी0 ने निरीक्षण किया तो पाया की इसे यहाॅ नही मारा गया है, 20 फीट के बगल में ही घर है, लोग रहते है, तो यहाॅ कैसे मारा जा सकता है। फिर डी0एस0पी0 बबून साव के खद्यान जाने के लिए तैयार हुए, जहाॅ मेरा बेटा भोला काम करता था। 2 द्य च् ं ह म
क्ण्ैण्च्ण् बबुन साव के खद्यान पर पहुचे तो बबुन साव पहले से वहाॅ मौजूद था। क्ण्ैण्च्ण् पुछा बबुन साव कौन है? इस पर बबुन साव बोला हम है, सर कुर्सी का व्यवस्था नही है। यहाॅ खद्यान पर क्ण्ैण्च्ण् बोला कोई बात नही, पता चला है कि भोला मेहता आपके ही खद्यान में काम करता था। बबुन साव हाॅ करता था, क्ण्ैण्च्ण् बोले वो मारा गया और आप उसे देखने तक नही गये। बबुन साव-वो वहाॅ से शाम 5 बजे ही चला गया था। क्ण्ैण्च्ण्.तो फिर आपको पता चला, आप देखने क्यो नहीं गये।
बबुन साव-यहाॅ काम ज्यादा था, इसलिए नही जा सके। क्ण्ैण्च्ण्. खद्यान को देखा और पुछा खद्यान के बीच में मिट्टी कहाॅ से आया। बबुन साव-सर बैंकर बनाकर पत्थर तोड़वाते है, इसलिए मिट्टी गिरवाये है। उसके इस बात पर हमे लगा कि सब काम डोजर (मिट्टी उठाने का गाड़ी) करता हैं कि वे बैंकर किसलिए।
क् ैण्च्ण्. उसे बगल वाले रूम मे खद्यान में काम कर रहे सभी मजदूर एवं बबुन साव को लाये और सबसे पुछ-ताछ किया। हम क्ण्ैण्च्ण् के गाड़ी के पास बैठे थे, अन्दर से निकले पर तीन लोग को क्ण्ैण्च्ण् गाड़ी में बैठाया और वहाॅ से चल दिये। (बबुन साव और दो लोग थे) गाड़ी महेशपुर चैक पर पहुॅची तो क्ण्ैण्च्ण् अचानक बोलता है, विश्वनाथ जी आप अपना समधी का घर जानते है। हम बोले सर हम जानते है और जानेगें क्यों नही, वहाॅ बेटी दिये है तो क्ण्ैण्च्ण् बोला चलिए आपके समधी के घर चलते है। वहाॅ से सिमरिया गये, वहाॅ जाने पर मेरा समधी घर में नही था। कुछ देर में पहुॅचे तो क्ण्ैण्च्ण् उनसे बात किये, हम गाड़ी में ही थे और बबुन साव भी गाड़ी में ही थे क्ण्ैण्च्ण्. क्या बात करके निकले किसी को पता नही चला। अचानक क्ण्ैण्च्ण् के मोबाईल पर थाना से फोन आया कि भीड़ काफी है। जल्दी थाना पहुँचिये, भीड़ नही सम्भल रहा है। इस पर क्ण्ैण्च्ण् बोला हम तुरंत पहुॅच रहे है। तब तक तुम लोग सम्भालों। क्ण्ैण्च्ण् थाना पहुॅचकर बबुन साव और विजय साव को अंदर ले गये हमे बाहर ही छोड़ दिया। कुछ ही देर में हमारे समाज के लोग हमसे पुछे कि कही हस्ताक्षर किये है क्या? हम बोले कही नही किये हैं तो उसने एक कागज दिया और हमसे हस्ताक्षर करवा के अंदर दे दिया और वो लोग कह रहे थें कि इसी बात पर केस करना है और इसी के आधार पर लड़ना है। हमकों समझ में नही आ रहा था कि लड़ने का क्या आधार बना है, क्योंकि हम कम पढ़े लिखे थे। 3 द्य च् ं ह म
थाने के बड़ा बाबू से बात करके 26 तारीक के शाम को 5 बजे लाश घर ले आये और तब से मेरे घर परिवार वालों का रोना-धोना शुरू था, सो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी पत्नी बार-बार बेहोश हो जा रही थी।
दुसरे दिन घर में सबका हालत खराब था। हम अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे, तभी अचानक 2 बजे के लगभग बबुन साव के यहाॅ काम करने वाली एक औरत हमारे यहाॅ आई वो भी रोने लगी और रोते-रोते मेरी पत्नी को चुप कराई तब तक उसके मोबाईल पर बबुन साव का फोन आया और पुछा वहाॅ गई, तो बताई, हम यही है। बबुन साव बोला उसकी माॅ से बात करवावो, तो मेरी पत्नी को फोन देकर बोली कि बबुन साव कुछ बोल रहा है। (फोन स्पीकर पर करने पर) बबुन साव बोला कि जो हमसे गलती हुआ माफ कर दो, मेरा इज्जत रख दो, तुम्हारा ही रिश्ता परिवार से हम ज्यादा मानेंगे और देते लेते रहेंगे। वो इतना ही बोल पाया था कि हम फोन लेना चाहे, लेकिन वो तुरंत मेरी पत्नी के हाॅथ से मोबाईल लेकर फोन काट दी और तुरंत यहाॅ से चली गई।
हम लोग इंतजार मे थे कि कुछ निर्णय आयेगा, क्योंकि बबुन साव के खद्यान के पास इसी घटना को लेकर बैठक था और हमारे घर परिवार से भी कुछ लोग गये थे, लेकिन वहाॅ क्या हुआ हमे पता नही चला, इतना जानते है कि वहाॅ पुलिस पहुॅचा और हमारे दमाद को उठाकर चल दिया और उसे थाने में बंद कर दिया। हमलोग शाम को लगभग 3 बजे दाह संस्कार के लिए चले गये। क्रियाक्रम तक कुछ नही हुआ तो फिर हम समाज से बात किये, तो समाज जाकर बबुन साव के मकान निर्माण का काम रूकवा दिया। इस पर बबुन साव बोला आप जो कहिएगा, हम मानने के लिए तैयार है, बैठकर निर्णय ले लिजिए। इस बात पर हमारा समाज बोला दोनों तरफ से पाॅच-पाॅच आदमी बैठकर निर्णय किजिएगा, तीन से चार बार बैठक टलने पर पाॅचवी बार बैठक हुई। बैठक अशोक साव के घर में रखा गया। बबुन साव के तरफ से पच्चीस आदमी थे और मेरे तरफ से पाॅच आदमी। पंच ने हमसे पुछा कि आप क्या कहते हैं कहिए हम कहे कि मेरा बेटा पिछले तीन माह से 2000/- दो हजार रूपये पर इनके डोजर गाड़ी में काम करता था। जब भी घर आता था तो फोन करके और गाड़ी भेजकर बुला लेते थे, लेकिन उसदिन न ही बुलाने आये न कुछ किये। इससे हमे 4 द्य च् ं ह म
लगता है कि मेरा बेटा की खद्यान में ही मारकर, खेत में लाकर फेक दिये। इसके बाद मेरे घर एक औरत को भेजकर फोन पर इस तरह बोले। पंच उनसे पुछा कि जब आपको पता चला कि भोला मर गया तो आप देखने क्यों नही गये। इस बात पर बबुन साव बोला कि मेरा मुंशी का कोर्ट मे हाजरी था, तो वही गये थे। इस कारण नही जा सके (पंच बोला 26 जनवरी के दिन भी कोर्ट खुला रहता है क्या) इसी बात पर पुरा बहस हुआ और पंच गुस्सा हुए और अंतिम निर्णय यह निकला कि इक्यासी हजार (81,000/-) रूपया दे कर मामला खत्म किया जाये, लेकिन हमे सब चालीस हजार (40,000/-) रुपये देकर यह बोल दिया गया कि केस खत्म होने पर पैसा देंगे। हम मन को मरोड़कर रह गये, क्या करते वो पैसा वाले लोग है उनके सामने हमारी क्या किमत है। जब मेरा दामाद जेल से छूटा तो उससे बात करने पर वो बताया कि 25 तारीक के शाम को मेरा मोबाईल पर भोला के मोबाईल से फोन गया कि तुम और हम वहाॅ गये, तो बबुन साव शराब पिलाया और इसके मरने की बात बताई, हमें गाड़ी में बैठाया गया और फिर कहाॅ-कहाॅ ले गया होश नही था। पुलिस हमे लेकर फिर खदान गया था, अंदर मे उसे दो तीन जगह खुन के छिटे दिखे पर वो फिर हमे गाड़ी मे बैठाकर थाना ले गया था। यह सब सुनकर मैं अधमरा हो गया, न कुछ कर पाता हूॅ और न घर का खर्च चला पता हूँ।
मेरी हालत इतनी खराब हो गई है, कि मैं क्या कहूॅ आपकों। आज हमे लग रहा है कि आप यह सब जान और सुनकर हमारे लिए कुछ करियेगा और हमें उम्मीद जगी है और हमे न्याय मिलेगा।
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